झूठा नाता जगत का, झूठा है घर बार
यह आलेख संत कवयित्री सहजोबाई के लेखन पर आधारित है, जिनके भक्ति साहित्य ने स्त्री की स्वतंत्रता, आध्यात्मिक चेतना और सामाजिक मुक्ति की राह प्रशस्त की। सहजोबाई ने अपने काव्य में पुरुषसत्तात्मक बंधनों को चुनौती देते हुए स्त्री-स्वातंत्र्य की आवाज़ बुलंद की। आलेख में उनके लेखन की सामाजिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक प्रासंगिकता का विश्लेषण किया गया है।
शोध आलेख
उज्जवल कुमार सिंह
9/11/2025