परिचय

उज्जवल कुमार सिंह हिंदी साहित्य के एक समर्पित शोधार्थी, विचारशील लेखक और भाषाई सक्रियकर्मी के रूप में जाने जाते हैं। वर्तमान में वह महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के ‘हिंदी और अन्य भारतीय भाषाएँ’ विभाग में शोध छात्र हैं, साथ ही भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीनस्थ राष्ट्रीय परीक्षण सेवा – भारत (NTS-I), भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर के अंतर्गत डॉक्टरल फेलो के रूप में कार्यरत हैं। उनकी अकादमिक पृष्ठभूमि अत्यंत सुदृढ़ है—उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधियाँ प्रथम श्रेणी में प्राप्त की हैं तथा उर्दू और भारत अध्ययन में प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम भी संपन्न किए हैं।

उज्जवल का शोध क्षेत्र सामाजिक न्याय, भाषा, साहित्य और लैंगिक विमर्श की सीमाओं को पार करता हुआ एक नवोन्मेषी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। उनका शोध विषय है—लैंगिक विमर्श की वैचारिकी और तृतीयलिंगी समुदाय की साहित्यिक एवं भाषिक अभिव्यक्तियाँ, जिसमें वे तीसरे लिंग समुदाय के अनुभवों, संघर्षों और साहित्यिक प्रतिनिधित्व का विवेचन कर रहे हैं। इस शोध में उन्होंने 60 से अधिक तृतीयलिंगी व्यक्तियों के साक्षात्कार लिए हैं, जो उनके शोध को ठोस समाजशास्त्रीय आधार प्रदान करते हैं।

उज्जवल न केवल एक गंभीर शोधकर्ता हैं, बल्कि साहित्यिक सृजन और सम्पादन में भी उनकी सक्रिय भागीदारी है। वे 'भाषाघर' नामक मासिक पत्रिका के संपादन एवं प्रकाशन से जुड़े रहे हैं, और उनके लेख विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं जैसे 'अपनी माटी' व 'लमही' में प्रकाशित हो चुके हैं। उनके लेखन में परंपरा और समकालीनता के मध्य एक सार्थक संवाद दिखाई देता है—चाहे वह लोकगीतों की व्याख्या हो या प्रतिबंधित साहित्य का विश्लेषण। वे तीन पुस्तकों के लेखक भी हैं—कुछ और कहानियाँ, अधूरी कहानियाँ (प्रकाशित), और सभ्यता विमर्श के व्याख्याता: ज़ाक देरिदा (प्रकाशनाधीन)।

उनका योगदान केवल लेखन तक सीमित नहीं है। वे नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी के पांडुलिपि पाठ एवं संपादन, AI कंपनियों के लिए भाषा सामग्री निर्माण, NPTEL में अनुवाद सहयोग, और राष्ट्रीय परीक्षण सेवा में प्रश्न-पत्र निर्माण जैसे कार्यों से भी जुड़े हैं। वे अनेक राष्ट्रीय संगोष्ठियों, कार्यशालाओं एवं संगठनों में प्रतिभागी और आयोजक के रूप में भी सक्रिय रहे हैं।

साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय रहते हुए उन्होंने आकाशवाणी वाराणसी के कार्यक्रमों में भी सहभागिता की है, जिनमें ‘हिंदी का वैभव’, ‘रविदास जयंती’, और ‘विजयदेव नारायण साही जन्मशती’ जैसे विशेष प्रसारण शामिल हैं। उनका रुझान पठन-पाठन, लेखन, दुर्लभ पुस्तकों का संग्रहण, यात्रा और संगीत जैसे विविध रचनात्मक क्षेत्रों में भी है।

भाषा, तकनीक और साहित्य के संगम पर कार्य करने वाले उज्जवल कुमार सिंह एक ऐसे नवयुवक साहित्यकार हैं जो परंपरा और नवाचार के बीच पुल निर्मित कर रहे हैं। उनका समर्पण, उनकी भाषा-दृष्टि और समाज के हाशिये पर मौजूद आवाज़ों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उन्हें समकालीन हिंदी साहित्य के एक संभावनाशील हस्ताक्षर के रूप में प्रस्तुत करती है।